शुरुआती दौर में बीमारी की पहचान से इलाज संभव: सिविल सर्जन
फाइलेरिया के लक्षण मिलने पर जरूर कराएं जांच: डॉ दिलीप सिंह
स्थानीय प्रखंड में फाइलेरिया मरीजों की 351 जिसमें 75 रोगियों को दिया गया एमएमडीपी कीट:
एमओआईसी
छपरा, 05 जनवरी। फाइलेरिया (लिम्फेटिक फाइलेरियासिस) एक ऐसी बीमारी है, जिसका समय पर इलाज नहीं होने से लोग दिव्यांग बन सकते हैं। इसलिए सरकार ने फाइलेरिया को मिटाने की दिशा में प्रयास तेज कर दिया है। जिसको लेकर रुग्णता प्रबंधन और विकलांगता की रोकथाम (एमएमडीपी) कीट का वितरण किया गया। ताकि फाइलेरिया के मरीज इसका सदुपयोग कर सके।
मांझी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र परिसर में सोनवर्षा निवासी सुमित्रा देवी, नवलपुर निवासी नरेश सिंह और सुधर छपरा निवासी टुनटुन यादव के बीच रुग्णता प्रबंधन और विकलांगता की रोकथाम (एमएमडीपी) कीट का वितरण किया गया। इस दौरान एमओआईसी डॉ रोहित कुमार ने बताया कि स्थानीय सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के अंतर्गत 351 फाइलेरिया मरीजों की पहचान की गई है।
मांझी नगर पंचायत सहित लेजुआर, कबीरपार, कौरुधौरु और डुमरी पंचायतों में सेंटर फॉर एडवोकेसी एंड रिसर्च (सीफार) के द्वारा नेटवर्क सदस्यों को तैयार किया जाता है। ताकि अन्य फाइलेरिया मरीजों को जागरूक किया जा सके। इस अवसर पर स्थानीय प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी डॉ रोहित कुमार, बीएचएम राम मूर्ति, बीसीएम विवेक कुमार व्याहुत और सीफा़र के बीसी कृष्ण नंदन सिंह सहित कई अन्य उपस्थित थे
शुरुआती दौर में बीमारी की पहचान से इलाज संभव : सिविल सर्जन
सिविल सर्जन डॉ सागर दुलाल सिन्हा ने बताया कि क्यूलेक्स मच्छर फाइलेरिया संक्रमित व्यक्ति को काटने के बाद किसी स्वस्थ्य व्यक्ति को काटता है तो उसे भी संक्रमित कर देता है। लेकिन संक्रमण के लक्षण 05 से 15 वर्ष में उभरकर सामने आता हैं। इससे या तो व्यक्ति को हाथ-पैर में सूजन की शिकायत होती है या फिर अंडकोष में सूजन आने की संभावना रहती हैं।
हालांकि महिलाओं के स्तन के आकार में भी परिवर्तन हो सकता है। फाइलेरिया जैसी बीमारी का अभी तक कोई समुचित इलाज उपलब्ध नहीं है। लेकिन शुरुआती दौर में रोग की पहचान होने की स्थिति में इसे रोका जा सकता है। संक्रमित होने के बाद मरीजों को प्रभावित अंगों की साफ सफाई सहित अन्य बातों को समुचित ध्यान रखना जरूरी होता है।
फाइलेरिया के लक्षण मिलने पर जरूर कराएं जांच : डॉ दिलीप सिंह
जिला वेक्टर जनित रोग नियंत्रण पदाधिकारी डॉ दिलीप कुमार सिंह ने बताया कि फाइलेरिया ग्रसित अंगों मुख्यतः पैर या फिर प्रभावित अंगों से धोरे – धीरे पानी रिसता है। उस परिस्थिति में प्रभावित अंगों की साफ़ सफाई बेहद आवश्यक होता है। क्योंकि नियमित रूप से साफ-सफाई रखने मात्र से संक्रमण का डर नहीं रहता है।
साथ ही प्रभावित अंगों में सूजन की शिकायत कम रहती है। इसके प्रति लापरवाही बरतने से प्रभावित अंग खराब होने लगते हैं। संक्रमण को बढ़ने से रोकने के लिए एमएमडीपी किट और आवश्यक दवा दी जा रही है। सबसे अहम बात यह है कि फाइलेरिया के लक्षण मिलने पर तत्काल जांच कराना चाहिए। ताकि बीमारी को फैलने से रोका जा सके।
स्थानीय प्रखंड में फाइलेरिया मरीजों की 351 जिसमें 75 रोगियों को दिया गया एमएमडीपी कीट :
एमओआईसी
सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र मांझी के प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी डॉ रोहित कुमार ने कहा कि मांझी प्रखंड में 351 फाइलेरिया मरीजों की पहचान कराई गई है। जिसमें 75 रोगियों को एमएमडीपी कीट का वितरण किया गया है। जिस दौरान फाइलेरिया मरीजों को एमएमडीपी का प्रशिक्षण भी दिया गया। ताकि उसका उचित सदुपयोग में लाया जा सके।
मरीजों को फाइलेरिया के प्रति जागरूक करते हुए उन्हें एमएमडीपी के इस्तेमाल के फायदों के संबंध में भी बताया गया। मरीजों को बताया गया कि एमएमडीपी किट के नियमित इस्तेमाल से मरीज हाथीपांव की बढ़ोतरी पर काबू पा सकते हैं। लेकिन इसके लिए मरीजों को स्वयं जागरूक होना पड़ेगा। तभी जाकर उन्हें हाथीपांव से राहत मिलेगी।