पटना. विकसित भारत @ 2047 के तहत आयोजित होनेवाले कार्यक्रमों की शृंखला में पटना कॉलेज में आज शिक्षक-छात्र संवाद आयोजित किया गया, जिसमें कॉलेज के प्राचार्य समेत सभी शिक्षक शामिल हुए। 80 से ज्यादा उपस्थित विद्यार्थियों के बीच में नोडल अधिकारी अविनाश कुमार ने सबसे पहले विषय-प्रवर्तन किया। जिसमें उन्होंने बताया कि 25 वर्षो बाद का भारत वैसा ही होगा, जैसा आज के नौजवान उसे बनाना चाहते हैं।
यह जरूरी नहीं कि समाज की दशा और दिशा बदलनेवाले विचार बड़े-बड़े संस्थानों से ही आयें, ये विचार समाज के किसी कोने या हाशिये पर खड़े लोगों के बीच भी पनप सकते हैं। मसलन- वायुरहित अन्तरिक्ष या चाँद पर लिखने का काम साधारण पेंसिल से किया जा सकता है, यह विचार रूसी स्कूल के एक साधारण विद्यार्थी का था, जबकि इस काम के लिए नासा ने 12 अरब $ खर्च किए थे।
जरूरत इस बात की है कि शिक्षण-संस्थानों के विद्यार्थियों में मौजूद विचारों को देश के शीर्ष-स्तर तक पहुँचने का अवसर दिया जाय। इसी उद्देश्य से यह अभियान शुरू किया गया है। डॉ मायानन्द का कहना था कि अंग्रेजों द्वारा सत्ता हथियाने से पहले तक भारत विकसित ही था और दुनिया की जीडीपी का एक-तिहाई यहीं से आती थी।
अब हमारी कोशिश यही होनी चाहिए कि भारत अपनी पुरानी विकसित अवस्था को यथाशीघ्र प्राप्त करे। प्रो संजय कुमार सिन्हा ने अपनी बात रखते हुए कहा कि अपने चारों ओर की छोटी-छोटी बातों- साफ-सफाई, समय पर पढ़ाई करना, सार्वजनिक सुविधाओं का संतुलित इस्तेमाल करना- का ध्यान रखे बिना विकसित भारत नहीं बनाया जा सकता है। प्रो दास ने कहा कि मनरेगा की शुरुआत के समय दावा किया गया था कि भारत से गरीबी छूमंतर हो जाएगी, पर गरीबी बदस्तूर जारी है।
कुछ लोगों को अमीर बनाकर भारत को विकसित नहीं बनाया जा सकता है। डॉ ऋचा ने विकसित भारत के लिए लैंगिक भेद-भाव की समाप्ति को विकसित भारत के निर्माण की पूर्व-शर्त बताया। डॉ सिद्धार्थ ने अपनी बात रखते हुए 1991 में बजट-भाषण प्रस्तुत करते हुए तत्कालीन वित्तमंत्री और भारत में उदारीकरण के प्रणेता डॉ मनमोहन सिंह के वक्तव्य का हवाला दिया कि जिस विचार का समय आ चुका है, उसे दुनिया की कोई ताक़त नहीं रोक सकती है।
उनका कहना था कि विकसित भारत में मानवीय और नैतिक मूल्यों का भी भरपूर समावेश होना चाहिए। कार्यक्रम के अंत में प्राचार्य प्रो तरुण कुमार ने बेहद सारगर्भित तरीके से और गागर में सागर भरते हुए कहा विकास को पाश्चात्य देशों की भाँति सिर्फ आर्थिक नजरिए से नहीं देखा जाना चाहिए। भारत को विकास का एक नया मॉडल और नई संकल्पना प्रस्तुत करनी चाहिए जिसमें पर्यावरणीय और मानवीय मूल्य केंद्र में हो।
विकास के सामाजिक, राजनीतिक और बौद्धिक पहलुओं पर भी समान रूप से ध्यान दिया जाना चाहिए। 2047 के विकसित भारत की तस्वीर खींचते हुए उन्होंने कहा कि विकसित भारत में भय और विद्वेष की कोई जगह नहीं होनी चाहिए। हर किसी को अपनी बात रखने के पहले डर का अहसास नहीं हो, गलत को गलत और सही को सही कहने का विश्वास रहना चाहिए।
दुनिया में भारत का नाम इसके धनाढ्यों के चलते नहीं बल्कि वाल्मीकि, व्यास, कबीर और गाँधी की वजह से है। कार्यक्रम में डॉ नकी अहमद जॉन, डॉ नीतीश कुमार विमल, डॉ मायानन्द, डॉ प्रेमशंकर झा, डॉ चन्दन कुमार चंचल, डॉ वाल्मीकि और कई अन्य शिक्षक उपस्थित रहे। विद्यार्थियों की ओर से सुलेखा, कुशाग्र मानस, पार्थिव और अन्य कई छात्रों ने अपने विचार रखे।